बंद तालों
का बदला:::1
पाँचो दोस्त अमृतसर
स्टेशन पर उतर रात
साढ़े दस बजे
उतर चुके थे । पेपर
के बाद हुई
दो चार छुट्टियाँ
का मज़ा हमेशा
ही किसी ऐसे
ही कोई घूमने
का प्लान बनाकर
लिया करते थे। विपुल
और विनय को हमशा ज़िन्दगी में कुछ
रोमांचक करने की ख़ोज में
लगे रहते तभी
उन्होंने बाकि दोस्त
प्रखर, सुदेश और
निशा जोकि सुदेश
की गर्लफ्रेंड थी
सबको माउंटआबू चलने
के लिए ही कहा था पर
प्रखर की ज़िद पर इस
बार वाघा बॉर्डर
देखने का मन
था तो अमृतसर
पहुंच गए । प्रखर
के पापा भी
कारगिल की लड़ाई
में शहीद हो
गए थे और
अब भाई की
पोस्टिंग भी कश्मीर में ही थी
। इसीलिए उसका
सेना के प्रति
सम्मान था शायद
इस भावना को बयान
कर पाना प्रखर
के लिए थोड़ा
मुश्किल था । अमृतसर
पहुंचते ही सीधे
अपने बुक किये
होटल में पहुँच
कर अपने कमरों में
आराम करने लगे । तय
तो यही हुआ
था कि थोड़ा
आराम कर घूमने
निकला जाए । पर
रात के तीन
बजे सुदेश और
निशा ने तो
अपने कमरे में से निकलने
से इंकार कर दिया । पर
प्रखर विपुल और विनय
तीनो पहुँच गए
अमृतसर के स्वर्ण
मंदिर और साथ
में थोड़ी दूर था जलियावाला
बाग । गुरूद्वारे
में माथा टेक अमृतसर
की सुनसान पड़ी
सड़कों पर घूमना शुरू
किया ।
हालॉकि उनका होटल
स्वर्ण मंदिर से
बहुत ज़्यादा दूर
नहीं था मगर फिरने
के लिहाज़ से
बस निकल पड़े उन गलियों
की तरफ जहॉ
आधे से ज़्यादा
मकान बंद पड़े थे
। एक अज़ीब सा
सन्नाटा चारों तरफ़
बिखरा पड़ा था
। बंद दरवाजों
के तालों पर जंग
लग चुका कुछ
टूटकर गिरने को
पड़े थें । तीनो
दोस्त बड़े ध्यान
से सभी बंद
घरों को देखे
जा रहे थे
बीच- बीच में विपुल
और विनय मज़ाक
भी करते थें । "ये
तो काफ़ी बड़े
घर है पर
लगता है कोई
सालों से लौटकर
नहीं आया विपुल
बोला। चल हम
कब्ज़ा कर लेते
हैं, यार
सुदेश और
निशा को वेडिंग
गिफ्ट में होम
स्वीट होम गिफ्ट
करेंगे।" कहकर दोनों ज़ोर
से हसँने लगें ।
"अरे! यार मुझे तो
भूतिया घर लगते
है एक अजीब
सी दहशत हो
रही है ।" प्रखर बोला
। "हो भी
सकता है, फिर तो मज़ा
आने वाला है
इस ट्रिप में।"
विपुल ने ताली
देकर विनय को
कहा । चुपकर यार।
चल निकले यहाँ
से, होटल
पहुँचते है । प्रखर
ने कहा
प्रखर तेज़- तेज़ कदमों
से चलने लगा ।
तभी आगे
जाकर चाय की
दुकान नज़र आई
तो विपुल दोनों
को ज़बरदस्ती वही ले
गया । "भैया तीन
कप कड़क चाय
पिलाओ तो और यह
भी बताओ की
यह इतने सारे
घर बंद क्यों
है ?" विपुल ने
चायवाले से पूछा
। "वहीं अंग्रेज़ों के
ज़माने का जलियावाला कांड बस
ऐसे कितने ही
घर उजड़ गए ।
तो क्या
कोई नहीं जो
इन घरों को संरक्षण दे
सके विनय ने
पूछा । कौन देगा
सरकार' कुछ करती
नहीं और इनका
कोई बचा नहीं
जो थोड़े बहुत
किसी के रिश्तेदार
बचे थे वे
भी बाहर चले
गए । अब तो
बस ऐसे ही
ख़ाली है ।"
चाय वाले ने
चाय देते हुए
कहा । "और आप ? आप
कबसे है यहाँ
पर ?" प्रखर ने
पूछा। "मेरा तो जन्म
यही हुआ था चाय
बेचना हमारा काम तो बरसो
से चला आ रहा
है ।
चाय वाले ने
छोटी सी सोती
हुई लड़की के
सिर पर हाथ
फेरते हुए कहा ।
तीनों ने
चाय वाले को
पैसे दिए और
आगे बढ़ गए
पर पता नहीं
क्या सोचकर प्रखर
ने पीछे मुड़कर
देख लिया । पीछे
देखते ही देखते
लड़की जाग जाती है और
बड़ी होने लगती
है और उसका
रंग -रूप बदलने लगता
है वह उस
चाय वाले का
हाथ पकड़ती है
और चाय वाला
भी डरावना हो
जाता है एक
भयानक आदमी। और दोनों
प्रखर को देख
मुस्कुराते है। चाय की
दुकान गायब। प्रखर
को काटो तो
खून नहीं वह
ज़ोर से चिल्लाया, "विपुल-विनय।"
"क्या हो गया क्यों
चिल्ला रहा है"
विवेक बोला। "हम यही
तो है न"। प्रखर विपुल
से बोला यार
वह दुकान और
वो चाय वाला
वो लड़की सब
सब .... भूत
बन गए। प्रखर बहुत
डरा हुआ था । "देख भाई
कल सुबह बात
करते है बहुत
थक चुके है
और उस चायवाले
की बातें सुनकर
मैं समझ सकता हूं
कि तेरे दिमाग में
क्या चल रहा
होगा जो भी है होटल
चलते है आराम
करते है।" विपुल ने
प्रखर को होटल
के अंदर खींचते
हुए कहा । तीनो
होटल के कमरे
में पहुंचे अपने कपड़े बदले
और बिस्तर पर
पड़ गए पर
प्रखर बेचैनी से
खिड़की से बाहर
देख रहा था
उसकी आँखों में
नींद नहीं थी
पर फिर भी
थकावट इतनी थी
कि वो ज्यादा देर
जागने का संघर्ष
नहीं कर सका
और सो गया।
सुबह के 10 बजे
पाँचो होटल से
रवाना हुए और
रास्ते में विनय कल रात
की बात सुदेश
और निशा को बताता
जा रहा था ।
सब उसका मज़ाक
भी उड़ा रहे
थें । पर प्रखर
का ध्यान उस दुकान
पर ही था
जो कल रात
दिखी थी। "यह तो बंद पड़ी
है"। निशा ने कहा
। "हाँ बंद
तो है चलो
किसी से पूछते
है" प्रखर ने
कहा। साथ में
कुल्फी रेढ़ी वाले
से पूछा तो
उसने कहा दिन
में तो बंद
ही रहती है
पर छह बजे
के बाद कोई
खोलता हो तो
पता नहीं क्योंकि
मैं तभी तक
यहाँ होता हूँ। सब
यह सुनकर आगे
बढ़ गए और
प्रखर को भी
लगा शायद मन का कोई
वहम हो । अब सब
फिर गुरूद्वारे में
माथा टेक जलियावाला
बाग देखने पहुंच
गए । चारों तरफ़
शांति और देशभक्ति
का प्रतीक यह
बाग और उधम
सिंह की मूर्ति
सब के मन में
साहस और श्रद्धा
की भावना को
मजबूत कर रही थी
। जहां सुदेश और
निशा सेल्फ़ी खींचने में
लगे थे वहीं
प्रखर को वही
लड़की और चायवाला
दिखाई दिए तो
उसने चारों को
बताया सब उन
दोनों के पास
पहुँचे । "भैया
आप यहाँ पहचाना?
कल रात
हम चाय पीने
आये थे आप
यहाँ क्या कर रहे हो ? विपुल
ने पूछा हम तो
यहाँ आते रहते
हैं हमारे सारे
अपने यही तो
रहते है, रात को
चाय का काम। चाय
वाले ने अज़ीब
और बेहद दर्द
भरी आवाज में
कहा । वो छोटी
लड़की ने चायवाले
का हाथ पकड़ा
हुआ था ।" आप
हमारे साथ फोटो
खिचवायेंगे? निशा
ने कह। और
प्रखर सब की फोटो खींचने
लगा । प्रखर ने
फोटो खींचते वक़्त यह महसूस
किया कि कैमरे
में लड़की बड़ी
नज़र आती है वह डर
गया और कैमरा
निशा को दिया
निशा ने सेल्फी
खींचे और वे चाय
वाले को
थैंक्यू बोल बाग़
से बाहर आ गए।
बंद
तालों का बदला::::2
निशा ने सारा दिन शॉपिंग
की। फ़िर शाम
को सारे दोस्त वाघा
बॉर्डर पहुँचे । देश की सेना
को देख प्रखर
को अपने पिता की याद
आई । सभी दोस्तों ने उसे
गले लगाया और भारत माता
की जय और वन्देमान्त्रम के नारे लगाते
हुए सभी एक ढाबे
में खाना खा रहे
थे । रात
हुई और घूमते-फिरते पता ही नहीं चला कि कब
वक़्त गुज़र गया । और रात
के बारह बज गए
। जब होटल पहुंचे तो होटल के मालिक ने
कहा कि-"आप सभी को रूम खली
करना पड़ेगा । क्योंकि पुलिस
आयी थी उनके कुछ लोग यहाँ
पर ठहरना चाहते हैं ।
हमारी भी मजबूरी है, आप अपने
आधे पैसे वापिस
लेकर रूम ख़ाली
कर दीजिये । असुविधा के लिए माफ़ी
चाहता हूँ ।" यह
कहकर होटल के मालिक
ने सभी को कमरे
का सामान खाली
करने के लिए
कह दिया । "यार ! हम इतनी रात को
कहां जायेंगे ?" निशा
ने कहा ।
"जाना कहा है? मिल
जायगा कुछ, पहले
यहाँ से बाहर तो
निकले।" सुदेश ने कहा ।
"रात के 1 बज रहे है। कहाँ
जायेंगे?" निशा
फिर परेशान होकर
बोली । "इसी का
नाम तो रोमांच
है"। विनय विपुल
को गले लगाकर
बोला ।
विपुल गाना गाते हुए
जा रहा था
कि 'रात
बाकी बात बाकी' तभी
सभी को चायवाले की दुकान नज़र आई । अरे ! वह देखो चायवाला
और उसकी दुकान
वहाँ चलते है, फिर
देखते है कहाँ चलना
है। सभी चाय की
दुकान पहुँचे। "भैया पाँच
कप कड़क चाय
तो देना विपुल
बोला । वही छोटी लड़की
भी खड़ी सबको
देख रही थी, पर
प्रखर को उसकी
आँखें घूमती हुई
नज़र आयी । उसने
एक दम ध्यान
हटा लिया । "भैया
कोई होटल मिल जाएगा । हम को
मज़बूरी में अपना
होटल खाली करना पड़ा है
।" विनय ने कहा।
"चलना है तो
हमारे घर चलो, वहाँ
रात गुज़ार लेना।" चाय वाले
ने चाय देते
हुए कहा । सभी
दोस्त मान गए
पर प्रखर ने
जाने से साफ़
इंकार कर दिया उसका
दिल गवाही नहीं दे
रहा था कि
वो वहाँ कोई रात गुज़ारे। सबने उसे
समझाया "यार! प्रखर
रात की तो बात है
फिर सुबह कही
और निकल लेंगे।" विपुल ने कहा। "मुझे पहले
से ही कुछ गड़बड़ लग
रही है । मैं नहीं
जा सकता । तुम्हें जाना है तो
जाओ।" प्रखर गुस्से से बोला। देख!
इनके घर जाकर तेरे मन का
वहम भी दूर हो जायेगा। और
हमारी रात भी आसानी से कट जाएँगी।" सुदेश ने
भी यहीं कहा। "हाँ ज़िद
न करो, प्रखर शॉपिंग करके
मैं बहुत थक
गयी हूँ ।" निशा ने भी यही
कहा । न चाहते हुए भी प्रखर मान गया ।
सब के सब चाय
वाले और उस छोटी सी लड़की
के साथ चल दिए । रास्ते
में मुकुल ने चाय
वाले से उसके घर और उस छोटी बच्ची के बारे
में पूछा। और जैसे ही उसने
यह बताया कि
यह लड़की उसकी बहन
है और उसका
घर जलियाँवाला बाग़ के
पीछे है। तो एक पल
के लिए सभी थोड़ा
घबरा गए फिर
विपुल ने पूछा, "वहाँ तो ज्यादातर घर
बंद पड़े है न
भैया?" "नहीं
हमारा घर तो
खुला हुआ है । हम
तो बंसी चायवाले
के नाम से यहाँ मशहूर
थें ।" चायवाले ने उत्तर
दिया । यह कहते ही
लड़की की बदलता
आँखों का रंग
इस बार सुदेश
ने भी देख
लिया और प्रखर तो
पहले ही डर के
मारे पीछे चल रहा
था। जैसे -जैसे वे उस गली की
तरफ बढ़ रहे थे । वैसे-वैसे
ही अँधेरा ख़ौफ़नाक होता
जा रहा था । निशा को लगा
कि उसके और
सुदेश के साथ कोई
और भी चल रहा था ।
सभी बंद पड़े
मकान के ताले खुलते
हुए से नज़र
आये फिर उसने
अचानक मुँह फेरा
तो सब गायब। निशा थोड़ा डर
गई और सुदेश
का हाथ कसकर
पकड़ लिया । तभी सुदेश
ने पूछा, "क्या हुआ?" "कुछ
नहीं शायद थक
गई हूँ ।" निशा ने
अनमने ढंग कहा । "बस अभी
पहुंचने ही वाले
है फिर आप सब आराम
ही आराम कर
लेना ।" यह कहते हुए चायवाले
के चेहरे पर एक
डरावनी हँसी और
टेढ़े मेढ़े दाँत
को प्रखर ही
देख पा रहा था ।
वही विपुल और विनय
सभी घरों को
गौर से देख
उनकी फोटो खींचते
जा रहे थें ।
तभी एक बड़े
100-200 गज़ के मकान
के सामने आकर वे रुक
गए। दरवाज़ा खुलता गया अंदर
अँधेरा था । लाइट
नहीं आती क्या ?
विपुल ने
पूछा । "अभी बत्ती चल जाएँगी । तभी घर के
दो-तीन बल्ब खुद ही
जल गए । और आज वहाँ एक
औरत भी नज़र
आई । और कहने
लगी "बंसी आ
गए तुम ?"
"हाँ ! आ
गया कुछ
मेहमान भी लाया हूँ।"
बंसी ने
कहा । औरत का मुँह
ढका हुआ था। लाल
रंग का घूँघट अँधेरे
में और भी ज्यादा
चमक रहा था । किसी
को भी उसका चेहरा
नज़र नहीं आया ।
मगर जब औरत
की नज़र उन पर
पड़ी तो
अचानक प्रखर को उसके दाँत
बाहर और बिलकुल
उसका चेहरा काला-नीला
और पीला नज़र
आया । वह तो एकदम
डर ही गया
तभी बंसी ने
कहा "भाग्यवंती इनको
ज़रा ऊपर वाला कमरा
तो दिखाओ । आज
की रात यह यही
रहेंगे । " सभी उस औरत के
पीछे सीढ़ियों पर
चलने लगे । एक विचित्र सा
खौफ मानो ऐसा
लग रहा था
कि जैसे सीढ़ियों
पर कोई एक नहीं अनेक
लोग खड़े हों । अनेक लोगों का
खड़ा होना सिर्फ़
निशा और प्रखर
को महसूस हुआ।
मगर जैसे ही
वह कुछ बोलते
तब कमरा आ
चुका था और
वह औरत वहाँ से
जा चुकी थीं ।
कमरा पुराने समय के
हिसाब से बना
हुआ था। दीवारों का पेंट उखड़ा हुआ
था। एक हलकी-हलकी सी दुर्गन्ध भी आ रही
थी । और एक
हल्का सा चांदनी
सा बल्ब भी
वही जगमगा रहा
था। तभी प्रखर बोला-"मैं अभी भी
कह रहा
हूँ कहीं और
चलो यह जगह
बिलकुल भी ठीक
नहीं लग रही
यह न हो
कि पता चले
कि हम तो आये
घूमने है और
यहाँ किसी भूतिया में फँसकर भूल-भुलैय्या
ही न बन
जाएँ।" "मुझे भी
कुछ अजीब सा
डर लगता है सुदेश आज
जब मैंने फेसबुक
पर डालने के लिए कैमरा
चेक किया था, तब
उस भैया और
लड़की की फ़ोटो
कहीं नहीं थीं ।
मुझे लगा डिलीट
हो गयी होंगी
पर सिर्फ वही
दोनों गायब थे
बाकी सब तो थे
। शायद
प्रखर ठीक कह
रहा है ।" निशा ने कहा । "तूने
यह बात पहले
क्यों नहीं बताई
निशा ? सुदेश ने
पूछा।" "मैं दुविधा में थी
, क्या कहो ।" निशा ने
सफाई दी । "यार ! वक़्त
देखो रात के
एक बजने वाला
है फिर कुछ ही देर
में सुबह हो जाएँगी । तुम लोगों
से थोड़ा सब्र
नहीं होता। चल यार विपुल
मेरे दिमाग में
कुछ खुराफाती चल
रहा है । चल छत
पर चलकर बात
करते है। इन डरे हुए
लोगों को यही
रहने दो ।" यह
कहकर विपुल और
विनय कमरे से बाहर निकल
गए । "चलो निशा थोड़ा
सो लेते है, बहुत
थक चुके हैं।" कहकर सुदेश
कमरे में ही बिछी
चारपाई पर लेट गया । निशा भी
वही उसके पास
बैठ गयी और
प्रखर ज़मीन पर
बैठ गया । थोड़ी देर में
सुदेश और निशा
तो सो गए पर प्रखर
की आँखों में
कहीं भी नींद
का नामो-निशान नहीं था । वह
तो बस कमरे
की दीवार को
देखे जा रहा था । ऐसे
लग रहा था कि जैसे इस
कमरे का कोई डरावना
गुज़रा हुआ कल है
। जो
अभी उसके सामने
शुरू हो जाएगा । और हुआ
भी वही उसे
टूटे हुए पंखे
पर कोई लटकता
हुआ नज़र आया और अचानक
गायब हो गया। बस
फिर प्रखर से
उस कमरे में
रुका नहीं गया
और कमरे से
निकल नीचे बरामदे
में आ गया ।
बंद
तालों का बदला::::3
पसीने से लथपथ प्रखर जैसे ही
बरामदे में पहुँचा उसने देखा कि चार
पाँच लोग काली-पीली शक्ल वाले लोग
बरामदे में घूम
रहे है, वह
लड़की भी वहीं
थीं । तथा पहले
से भी ज्यादा
डरावनी लग रही
थीं । चेहरा नीला पड़ा
हुआ था । उसकी तरफ़ सभी
बढ़ रहे थें ।
ऐसे लग रहा था
सब उसके शरीर
के अंदर घुस
जायेंगे । और वह कुछ
नहीं कर पाएंगा।
तभी वह ज़ोर
से चीखा और वहाँ
सो रहे निशा
और सुदेश भी
जाग गए और
भागते हुए नीचे
आए और तभी
विपुल और विनय हँसते
हुए कैमरा लेकर आ गए । और
सबकुछ ठीक हो
गया। वह डरावने
लोग सही हो गए । दो
औरतें और दो
आदमी पर वह
लड़की नहीं थीं। "ये
सब हमारा किया
हुआ था । हमने भैया
से बात कर ली थीं । हम यह डरावनी
वीडियो अपलोड करेंगे
और तहलका मचा
देंगे । देखना कितने ज़्यादा
लाइक आते हैं । और खूब
पैसा भी मिलेगा।" विनय
ने कहा । "तू पागल
है, तूने मेरी
जान निकाल दी थीं
। प्रखर ने विपुल
को धक्का देते
हुए कहा । निशा और
सुदेश ने भी
डाट लगायी । प्रखर ताज़ी
हवा लेने छत
पर चला गया । निशा
और सुदेश भी वापिस
कमरे में आ गए। विपुल और
विनय वही कैमरा
चेक करने लगे। शुरू से
वीडियो शुरू की । पूरा
घर सब वीडियो
में दिख रहा था
। पर जब
आगे बड़े तो
प्रखर के अलावा
वहाँ कोई नहीं
था। बस वीडियो में
प्रखर चीखते हुए दिख
रहा था।
"यह क्या बाकी
सब लोग कहाँ गए? तूने
ढंग से शूट
किया था ।" विपुल
ने पूछा। "हाँ यार सब सही
चल रहा था ।
पता नहीं क्या
हुआ ।" विनय अभी भी
कैमरा बार-बार ठीक
से देखकर बोल रहा
था । मगर बस प्रखर
ही दिख रहा
था । हम
दोबारा शूट कर
लेंगे ज़रा भैया
से पूछ कर
आता हूँ । कहकर विनय
पूछने चला गया । ढूंढ़ते-ढूंढ़ते एक
कमरे में पहुँच
गया । उस कमरे
में पहले से
कोई पीठ खड़ा
कर खड़ा था । घुसते ही
विनय ने बोलना
शुरू किया । "भैया क्या
फिर से वही
लोग आ जायेंगे
हमारा ठीक से
शूट नहीं हुआ है
। उस आदमी ने
कुछ नहीं कहा । विनय
उसके पास चला
गया उसका कन्धा
पकड़ फिर बोला
भैया ।" यह सुनते ही
उसने पीछे मुड़कर
देखा तो विनय
को कांटो तो
खून नहीं । उसकी दोनों
आँखें नहीं थीं, चेहरा
काला पड़ा हुआ
था। एक भद्दी
और मोटी सी
आवाज़ में बोला-"हाँ आ
जायेंगे बताओ कब बुलाना
है ? यह कहकर
उसने विनय की
गर्दन पकड़ ली । और
विनय की आँखें
बाहर आई ।
जब काफी देर
तक विनय नहीं
पहुँचा तो वह उसे
ढूँढने जाने के
लिए हुआ था । तभी
विनय आ गया। "तू
ठीक है? कहा
रह गया था ?" विपुल ने पूछा और
देखा कि विनय
कुछ बोला नहीं
बस सिर्फ सिर
हिला दिया है । "कब
आ रहे है
वो लोग ? बस
आते ही होंगे।" विनय
ने विपुल को
घूरते हुए कहा । चल
मैं बाकि दोस्तों
को भी बता
देता हूँ । यह
कहकर विपुल ऊपर
कमरे में गया
तो वहाँ निशा
और सुदेश पहले
से ही सिर
पकड़कर बैठे हुए थे
। "क्या हुआ ? विपुल
ने पूछा । प्रखर
तो यहाँ से
जाने के लिए
कह रहा है। वो
नहीं मानेगा, अब
हम यहाँ से निकलेंगे।
सुदेश बोला। कैसी बातें
करते हो ? एक
वीडियो और शूट
कर लेते हैं। मैंने
सब इंतज़ाम कर
लिया है बहुत मज़ा आयेंगा। हम रातों- रात अमीर बन
जायेंगे ज़रा सोचो तो।" विपुल ने कहा
। "प्रखर नहीं मानेगा ।
वह वैसे भी
बहुत परेशां लग
रहा है। और हम
उसे नहीं समझा
सकते। और उसे अकेला
भी नहीं जाने
देंगे ।" निशा ने कहा ।
"ठीक है तुम
तीनो नीचे आओ
। हम वही
थोड़ा सा शूट
कर बाहर के
दरवाज़े से बाहर
निकल लेंगे ।" विपुल ने कहा
।
सभी अपना बैग लेकर
नीचे बरामदे में
आ गए। नीचे
विपुल पहले से
ही उनका इंतज़ार
कर रहा था। विनय
के हाथ में
कैमरा था। तभी
विपुल ने एकदम
से शुरू करना
कहा तो सबकी
सब डरावनी शक्लें
उनकी तरफ बढ़ने लगी
और पूरा कमरा भूतों
के हजूम से
भर गया हो
जैसे । प्रखर, निशा और सुदेश
ज़ोर से चिल्लाए
और भागने लगे । सब
दरवाज़े की तरफ
भागे तो विपुल ने
उन्हें रोकते हुए
कहा कि ये सब
एक नाटक है
पर ऐसा कुछ
नहीं है। विनय सबको
मना कर मत भागों
। उन्होंने जैसे ही
पलटकर देखा सब
भूत रुक गए । तभी
विपुल ने कहा- सभी
को धन्यवाद। पर अब हम
चलेंगे, चल विनय, चल
यहाँ से," यह
कहकर उसने विनय
का हाथ पकड़ उसे
चलने के लिए
तो कहा तो
उसने पूरी ताकत
से विपुल को दीवार
की और धकेला । सब
विनय को देखने
लगे उसकी आँखे
लाल हो गयी
और उसका सिर
घूमने लगा इसका
मतलब वह भी
एक भूत बन
चुका था । "सब
के सब भागों
यहाँ से" प्रखर ने कहा
। चारों दोस्त दरवाज़े
की तरफ़ भागने लगे। सबने
दरवाज़ा खोला और
भागते-भागते सड़क पर
आ गए । फिर
एक बंद घर के पास
हाँफते-हाँफते रुक गए । "मैंने
कहा था न
कि कोई गड़बड़
है, मगर मेरी
सुनता कौन है?" "अब
भुगतो", प्रखर
ने चिल्लाते हुए
कहा। "मैं और नहीं
भाग सकता। मैं थक
गया हूँ । विपुल
यह कहकर उस बंद घर
के पास बैठ
गया। "जल्दी से
जल्दी स्टेशन पहुंचते
है और यहाँ
से निकलते हैं । सुदेश ने कहा
। तभी उन्होंने देखा
जहाँ विपुल बैठा
हुआ था उस
घर का दरवाज़ा अपने
आप खुला और ज़ोर की आंधी
आयी और विपुल
को अंदर खींचकर
ले गयी । सब के सब बुरी
तरह डर गए
और भागने लगे। आगे
वो भाग रहे
थे और पीछे
उनके भूत बन
चुका विनय भाग
रहा था ।
छोटी-छोटी गलियों में
भागते हुए तीनो
दोस्त एक खुले
घर में पहुंचे।
पीछे मुड़कर देखा
तो कोई नहीं
था । अब क्या करे ! ऐसे
तो हम सब
के सब मारे
जायेंगे । निशा ने
रोते हुए कहा ।
कुछ नहीं होगा
बस कुछ घंटो बाद सुबह
होने वाली है
फिर यहाँ से
निकल जायेंगे सुदेश
ने उसे गले लगाते
हुए कहा। तभी
प्रखर ने उस
घर की तरफ
देखा तो वह
भी घर किसी
खंडहर से काम
नहीं था सामने
कुछ तस्वीरें लगी
थी। शायद उसी
घर के लोग थे
। एक
जगह पूरा परिवार
एक जगह कुछ
बच्चों की तस्वीरें ।
उसी बच्चों में वह छोटी
लड़की जो तस्वीर
में दिखाई थी । प्रखर
ने सुदेश और
निशा को भी
दिखाया उन्हें उन
तस्वीरों में भी
वही चाय वाला
भैया दिखाई दिया ।
सब बुरी तरह
डर गए। तस्वीर के
पीछे लिखा था । '1919' "इसका
मतलब यह लोग
तो मर चुके
हैं । जलियावाला बाग़
में मरने वाले
लोगों में यह
भी थे और
वो जो हमें
उस घर में
दिखाई दिए वे इनका
पूरा परिवार होगा
तभी मैं कहो कि
उनकी तस्वीर कैमरे
में क्यों नहीं
आयी । इसका मतलब विपुल
और विनय भूतों
के सच के
भूतों के साथ
शूटिंग कर रहे
थें ओह माई
गॉड" निशा ने
सिर पकड़कर कर कहा
। "अब क्या होगा?" सुदेश
ने भी कहा ।
बंद
तालों का बदला::::4
कहीं यह घर
भी भूतिया तो
नहीं है । थोड़ा अंदर
चलते है अगर
यहाँ छुपा जा
सकता है तो फिलहाल
छुपने में भी
कोई बुराई नहीं
है । सभी अंदर के
कमरों की तरफ़ चल पड़ते
हैं । प्रखर और सुदेश
अपने-अपने फ़ोन की लाइट
जला कर अँधेरे में
चलने की कोशिश
करते हैं । जैसे ही
एक बंद कमरे
का दरवाज़ा खोलते
है तो अंदर
देखते है कि
चारपाई पर एक
आदमी लेटा हुआ होता
है। उन्हें देखते
ही वह जाग
जाता हैं उन
तीनो को लगता
है शायद यह
आदमी कोई भूत
हो इसलिए जब
वो भागने लगते
है तब वो
उन्हें रोक लेता
है । और उनसे
उनकी कहानी पूछता
है । सब उन्हें बताते
है कि उनके
साथ अब तक
क्या-क्या हो चुका
है । "हां यह
सही है कि मैंने
भी सुना था
कि जॉलीवालाबाग में
मरे हुए लोगों
की रूहे यहाँ
आती है । पर तुम
जिनकी बात बता रहे
थे वो भाई-बहन
तो उस बाग़
में नहीं मरे । पर
यहाँ पर बहुत सालों पहले
चोरी हुई थी, उन
चोरों ने ही
उन्हें बेरहमी से
मार डाला था ।
वे तो
उस दिन बाग
में नहीं गए
अपितु वे तो
दोनों ही बच
चुके थे । मगर एक रात
की डकैती ने
उन दोनों की
जान ले ली ।
वो बेचारा तो अपनी
चाय बेचता था, नाम
था उसका 'बंसी
चाय वाला ।' बस
जब वो मर
गए तो सबको
मारना शुरू कर
दिया उन चोर-डाकुओ
को भी वे
मार चुके हैं । और सब
के सब इन्ही
बंद तालो में भटकते
रहते है और जब तुम जैसे
नासमझ लोग उन्हें
मिल जाते है
तो तुम्हारे जैसो
का भी शिकार
हो जाता हैं ।" उस आदमी
ने बड़े ही
इत्मीनान से सारी
कहानी सुनाई ।
"आप यहाँ क्या
कर रहे हैं ?" प्रखर
ने पूछा। "मैं
तो चोर हूँ. आज
यहाँ आ गया
था। उस आदमी ने
कहा। "अब यहाँ से
कैसे निकला जाये?" निशा घबराकर बोली ।
तभी उसके
सामने की खिड़की
अपने आप खुलने
लगी और तो
और वहाँ से
भी कोई साया
आया और एक ऐसे
डरावनी शक्ल में
परवर्तित हो गया और
अपना हाथ लम्बाकर
निशा की तरफ
बढ़ने लगा और
जैसे ही उसका हाथ निशा
के गले तक
पहुँचा वो सब
फिर उस कमरे
से निकल भागे
उनके साथ वो
आदमी भी था ।
इस बार
घर के दरवाज़े
बंद हो गए
और वो एक
कमरे से दूसरे
कमरे की तरफ
भागने लगे । मगर
हर तरफ वो
काला साया उनका
पीछा कर रहा
था पर तभी
देखा कि एक
कमरे में विपुल
खड़ा है और
उसकी आँखें चमक
रही है। "यार ! तू ठीक है न ?" सुदेश
ने पूछा। "हां
ठीक हूँ पर
हम सब मारे
जाएंगे। चलो हम सब किसी
सुरक्षित जगह चलते
हैं । विपुल ने
भारी सी आवाज़
में कहा । "कहाँ"
"और तुम तो
कह रहे हो
कि हम सब
मारे जायेंगे।" प्रखर
ने पूछा । "अगर
तुम मेरे साथ नहीं
चले तो ज़रूर
मारे जाओंगे ।" सब
के सब विपुल
के पीछे चलने
लगते है । अब
उस मकान का
दरवाज़ा खुल चुका
हैं । वह उन अपने तीनो
दोस्त और उस
आदमी को लेकर
एक और बंद ताले वाले
मकान की तरफ़
ले जाता हैं
जैसे ही विपुल
की नज़रे उस
ताले को देखती
है वह ताला
टूट जाता हैं ।
"यह ताला कैसा
टूटा ? "सुदेश के
इतना बोलते ही
विपुल का हाथ
बड़ा होकर सुदेश
की तरफ बढ़ने
लगता है । सब फिर
भागते हैं ।
निशा का थकान
से बुरा हाल
है । "मुझे
लगता है यहाँ
से भागना फिज़ूल
है। सब जगह वही भूत-प्रेत
और आत्माएं हैं। आदमी
ने कहा। "हमे तो
किसी तरह स्टेशन
पहुँचना है बस ताकि हम जल्द
से जल्द यहाँ
से निकले ।" प्रखर
ने कहा । "तुम्हें स्टेशन
मैं पहुँचा देता
हूँ ।" आदमी ने कहा । "
आप कैसे
पहुंचाएंगे ? आपको रास्ता पता है? जहाँ हमें फिर
ऐसा ख़तरा नहीं
मिलेगा ।" सुदेश ने अपने
मन का सवाल पूछा था।
"तुम जाना चाहते
तो मेरे पीछे
चलो, वरना तुम्हारी
मर्ज़ी । मैं तो
यहाँ से निकल
ही जाऊँगा।" यह कहकर
आदमी आगे-आगे चलने
लगा । तीनों दोस्त रूककर
सोचने लगे । "जिस पर
भरोसा कर रहे
हैं वे सब धोखा
दे रहे हैं ।
सब हमें मारने में
लगे हुए है, ऐसे
में अब इस
चोर आदमी पर
भरोसा करना ठीक
है क्या ?" निशा
ने कहा । और
हम कर भी
क्या कर सकते
है निशा ? कोई
और रास्ता भी
नहीं है हो
सकता है यह
हमारी मदद ही
कर दें । सुदेश ने कहा
। मेरा
दिमाग तो काम नहीं
कर रहा ।
"विपुल और विनय
मरकर भूत बन
चुके हैं अब हमारा क्या
होगा ?" प्रखर
ने कहा । "देखो
यहाँ इस सुनसान
में खड़े रहना
ठीक नहीं है । उसी
आदमी के पीछे
चलते है, यह
कहकर सुदेश निशा
का हाथ पकड़
और प्रखर को भी
खींच उसी
दिशा की तरफ
भागने लगता है, जहां
वो आदमी जा
रहा था ।
"सुनो ! सुनो ! हम
भी पीछे आ
रहे हैं ।" तीनों
यह कहते हुए
उसके पीछे चलने लगते
हैं । अब सब
के सब गलियों
से निकल बाहर
की तरफ़ आने
लगते हैं । मगर रास्ता
सुनसान है झाड़ियाँ
और पेड़ शुरू
हो चुके है ? झाड़ियों में
रेंगते हुए कीड़े
नज़र आने लगते हैं
। जिनके देखकर लग
रहा था कि
यह भी कोई ज़हरीला साँप बन
डसने लग जायेंगे
। "हम जहाँ कहा जा रहे
हैं ?" प्रखर ने
पूछा । "तुम्हे स्टेशन पहुँचने
से मतलब होना
चाहिए ।" आदमी ने बड़ी
रुखाई से कहा ।
"एक बात बताओ
उन दोनों भाई
बहन को मरे
हुए कितना समय हो चुका
है ? क्योंकि आपने
ही यही कहा
था कि वो लोग
उस जलियावाला बाग़ के
कांड में नहीं
मरे थे ? "प्रखर
ने पूछा । "उनके
मरने के पाँच
साल बाद ।" आदमी ने कहा ।
"फ़िर वो चोर
कब मरे जिन्होंने
उन्हें मारा था ? कोई
दो साल बाद ।"
आदमी बोलते हुए लगातार आगे बढ़ता जा
रहा था । तभी
प्रखर का गला
सूखने लगा, "आपको
यह कहानी यहाँ
के लोगों ने
सुनाई होंगी? प्रखर ने एक
बार अपनी आवाज़
को फिर संभालकर बोला ।
"कहानी सुनाने के
लिए कोई ज़िंदा
नहीं रहा ।" "फिर
आपको को कैसे
पता ?" अबकी बार
निशा ने पूछा । " मैं वही
चोर हूँ जिसने उन
भाई-बहन को मारा और
उन्होंने मुझे । ।
। । ।
। । यह कहकर
उसने पीछे मुड़कर
देखा उसका जला
हुआ चेहरा आँखे
बड़ी-बड़ी । मुँह से आग निकलने
लगी वह ज़ोर से
दहाड़ा ।
पसीने और डर से लथपथ
वह तीनो ज़ोर
से चिल्लाये ।
आवाज़ कही हलक
में अटक कर रह
गयी और
प्रखर बोला। "भागो
निशा और सुदेश कहीं
भी भागों" । सब
उलटी दिशा की
तरफ भागने लगे।
बंद
तालों का बदला:::5
जहाँ-जहाँ वो भागता
जा रहे थें ।
वही नीचे ज़मीन
से सड़े-गले हाथ
निकलते जा रहे
थें। एक हाथ
ने निशा का
पैर पकड़ लिया ।
वह ज़ोर से
चिल्लाई तो सुदेश
ने अपने पैर से
मारना शुरू कर दिया। फिर
अपने बैग से
कोई धारधार चीज़
निकाल उस पैर में चुभो दिया\।
तभी पैर छूट गया
और फिर दोनों
भागने लगे। तभी
वही डरावनी शक्लों
ने प्रखर को घेर
लिया। तभी वही वो
जो चोर डरावना आदमी था उसने
प्रखर के सामने आकर
कहा कि "तुम्हे
तो कोई तुम्हारा
अपना ही बचा
सकता है ।" और
प्रखर की तरफ
ज़हरीला साँप फैंक दिया
। जिसका मुँह
उसके फन से भी
ज्यादा बड़ा था।
तभी प्रखर के पास
सुदेश और निशा
पहुँच गए । और उन्होंने
जलती हुई माचिस
की तीली को
साँप के ऊपर फैंक दिया।
"भाग प्रखर" सुदेश ने कहा।
फिर तीनो भागने
लगे। और भागते-भागते
निशा का पैर फँस गया
और वो अचानक से
गिर गई ।
"अरे ! जल्दी चलो"।
प्रखर ने कहा ।
" सब तेरी वजह से
हुआ है, तुझे ही अमृतसर आने
की पड़ी थी
और तो और
वाघा बॉर्डर देखने
के लिए मरा जा
रहा था । अब
सचमुच ही
मौत हमारे पीछे
पड़ गई ।
अच्छा-खासा हमारा प्लान पहाड़ो
की वादियों में
घूमने फिरने का
बन रहा था ।
वही चले
जाते अब तू
मर हम क्यों
मरे ? अब कह
रहा है जल्दी चलो
।" सुदेश ने
निशा को उठाते हुए
कहा । "मेरी वजह से? मैंने कहा था कि उन
बंद तालों के घरों
में जाओं ।
और तो और विपुल और
विनय को भी
मैंने नहीं कहा
कि भूतो के साथ
मिलकर कोई खेल
खेलो ।" प्रखर ने भी लगभग
चीखते हुए कहा। "तुम दोनों लड़ क्यों रहे हों ? हमें
अपनी जान के बारे में सोचना
है न कि उसके
बारे में जो गुज़र
गया सो गुज़र
गया । निशा
ने दोनों को समझाते हुए
कहा।
अब तीनों लगे
भागने अब स्टेशन
ज्यादा दूर नहीं
रहा बस स्टेशन
पर पहुंचने ही
वाले थे कि
अचानक से ज़ोर से
हवा आयी
और निशा गायब
हो गयी। वही झाड़ियों
की सरसराहट ने
निशा को ले जाने का
अनुमान दे दिया। "निशा कहा
गयी ? "निशा" दोनों
सुदेश और प्रखर
ज़ोर से चिल्लाने
लगे । मगर कहीं
कुछ नज़र नहीं
आया। "इसका मतलब
निशा हमेशा के
लिए हमें छोड़कर
चली गयी। " सुदेश ने लगभग
रोते हुए कहा ।
"कैसी बातें कर रहा
हैं ? ज़रूरी
है, जो विपुल
और विनय के साथ
हुआ वो निशा
के साथ भी हूँ
। हो सकता है, वह
रास्ता भटक गयी
हूँ।" प्रखर ने सुदेश का
कन्धा पकड़ उसे
सँभालते हुए कहा ।
"आखिर सब खत्म
हो गया तूने महसूस नहीं
किया कि वो भूत निशा
को उठाकर ले गए
है। "यह कहकर उसने
गुस्से में एक
ज़ोर का घूंसा
प्रखर के मुँह पर दे
मारा । "अब हम
कहीं के नहीं
रहेंगे" बस सुदेश यह
कहे जा रहा
था और प्रखर को
मारे जा
रहा था । फिर
दोनों में झगड़ा
शुरू हो गया । लगे
एक दूसरे को मारने सुदेश
के सिर पर खून
सवार हो रहा था । तभी एक
ज़ोर का
घूंसा सुदेश और प्रखर
के मुँह पर लगा
और वो दोनों
दूर जा गिरे
। उनके सामने
विपुल और विनय
भूत बन सामने
खड़े थें । दोनों
ने दोनों को
मारना शुरू कर दिया
और उसके बाद बाकी के
भूत भी उन्हें
खींच एक उस जगह ले
आएं, जहा निशा
को पेड़ से
उल्टा टांग रखा
था और उसका
सिर आग की
तरफ था । जो कटकर सीधा
आग में गिरने
वाला था। निशा
ज़ोर से चिल्ला
रही थी और
बार-बार एक ही बात
कह रही थी
"कोई बचाओं मुझे" । प्रखर और
सुदेश को ज़ख़्मी
हालत में देख
निशा ने और भी
ज़ोर से चिल्लाना शुरू कर
दिया । "सुदेश प्रखर
बचाओं मुझे" निशा
ने कहा । "तुम दोनों ने हमे बहुत
परेशां किया है । 'बहुत
भगाया अब हम
तुम्हे तड़पा - तड़पा कर
मारेंगे ।"भूत बने
विपुल और विनय
ने कहा । "भाई
मेरी निशा और
मुझे छोड़ दें और
इस प्रखर की
जान ले ले ।" सुदेश ने
हाथ जोड़ते हुए
कहा । "ये क्या कह रहा है
तू साले ?' प्रखर
ने सुदेश ने कहा । "बिलकुल ठीक कह रहा
हूँ तेरे खानदान
में तो वैसे
भी मरने की बड़ी
हिम्मत है। तभी उस
लड़की बनी भूत ने कहा
"सब मरेंगे हम
भी मरे थे
हमारे पूरे खानदान भी
जलियावाला बाग़ में
मारा गया था । सब
मरेंगे ।" तभी उस प्रेत
भूतनी का मुँह
बड़ा हो गया
और उसका हाथ
इतना लम्बा हो गया
कि निशा की
गर्दन तक पहुंच
गया । सुदेश ज़ोर से
बोला निशा !!!!!!! तो बाकी के प्रेत
ने भी उसकी
गर्दन पकड़ ली
इसे पहले की
निशा का सिर
उस दहकती आग
में जाता ।
प्रखर को उस
भूत चोर की
बात याद आ
गयी । 'तुम्हे कोई
तुम्हारा अपना ही बचा सकता
है ।' तभी प्रखर ने
अपने पिता को याद किया
और अचानक इतनी
तेज़ रोशनी हो
गई कि उस
लड़की भूत का
हाथ निशा की गर्दन को
तोड़ नहीं पाया
। सामने देखा तो
उसके पिता की आत्मा खड़ी
थी । सभी भूतों
ने प्रखर के
पिता की आत्मा पर
हमला करना शुरू
किया । फिर और
भी कई आत्माएँ
आ गई । तभी उस
लड़की भूतनी को
अपना परिवार और
सारा पड़ोस जो उस जालियावाला
कांड में मर
चुका था नज़र
आने लगा । तभी
वो लड़की का
भूत और बंसी
की आत्मा शांत
हुए और निशा
पेड़ से नीचे गिर
गई । "भागों बेटा
स्टेशन पहुँचो बस
पीछे मुड़कर मत
देखना ।" उसके
पिता की आत्मा
ने कहा । तीनों
भागकर स्टेशन पहुँचे
। और दिल्ली वाली
गाड़ी में चढ़
गए भीड़ होने
के कारण दरवाज़े
पर ही खड़े
हो गए । सुदेश
ने निशा को गले
लगा लिया
"शुक्र है, हम बच
गए ।" सुदेश ने कहा ।
आज प्रखर
के पापा और उन
सभी नेक रूहो
ने बचा लिया।
निशा ने प्रखर को
देखते हुए कहा । "हां देश
के लिए मरने
वाले शहीद क्यों
कहलाते है ? आज
समझ आया क्योंकि
वह अमर हो
जाते है और वो
वो किसी से
बदला नहीं ले सकते।" यह
कहते हुए प्रखर
की आँखों में
आँसू आ गए ।
"अब यह नाटक
बंद कर। बस
यह हमारा आखिरी ट्रिप
था। अब कहीं जाना होगा तो मैं और
निशा खुद देख
लेंगे । बस दिल्ली
पहुँच जाये। " सुदेश ने
प्रखर को घूरते
हुए कहा । गाड़ी अपनी
गति से आगे
बढ़ रही थी
और सुदेश पागलों की
तरह निशा को
गले लगाते हुए "हम बच गए" कहने लगा। तीनों
दोस्तों के चेहरे
पर मुस्कान आयी
थी कि ट्रैन
के दरवाज़े से
किसी ने सुदेश
को ज़ोर से
खींचा निशा ज़ोर
से चिल्लायी सुदेश्शशशशशशशशशश दोनों
ने देखा कि
सारे भूत सामने दूर
खड़े थे और सुदेश
की गर्दन कट
चुकी थीं और
उनके हाथ में
थीं । निशा ने
न कुछ सोचा
बस चलती गाड़ी
से कूद गई
और उसी दिशा
में भागने लगी
और अँधेरे में
गायब हो गयी ।
प्रखर ने
रोकना चाहा पर
देर हो गयी
गाडी अमृतसर स्टेशन
छोड़ चुकी थी
। और सुदेश
के शब्द "आखिरी
ट्रिप" उसके कानों में
गूँज रहे थे
। । । ।
समाप्त
स्वाति
ग्रोवर